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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
कुछ नहीं भी समझा क्यों कि आप जब बोलते थे तब आप के कंठ-घंटडी ऊँची नीची होती रहती थी । उसको मैंने एक सो आठ वार तो गिना परन्तु कितने ही गड़बड़वाले शब्द तुम शीघ्रता से बोले उस समय वह घंटड़ी कितनी बार ऊँची नीची हुई उसकी संख्या में न गिन सका । यह सुन कर सर्व सभाजन हँसने लगे। अहो ! यह बहुत अच्छा श्रोता है। गुरुने भी उसको अयोग्य जान उसकी उपेक्षा की।
फिर किसी दिन दूसरे सूरि वहां पर आये । उनको भी श्रेष्ठीने कमल का सर्व वृत्तान्त सुनाकर उसको किसी भी प्रकार धर्म पढ़ाने की विनति की। तब मूरिने कमल को बुला कर कहा कि-हे वत्स ! तू नीचे दृष्टि रख कर हमारा उपदेश एक चित्त से सुनना । ऐसा कह कर उन्होनें व्याख्यान देना आरंभ किया । अन्त में कमल से पूछा कितू क्या समझा ? इस पर उसने उत्तर दिया कि-हे पूज्य ! इस छिद्र में से चिंटियें जातीआती थी जिनकी संख्या मैंने एक सो आठ गिनी । इस प्रकार हास्यजनक उत्तर सुनकर अन्य श्रावकोंने उसको वहां से निकाल दिया ।
फिर किसी दिन उपदेश की लब्धिवाले सर्वज्ञ नामक सरि वहां पधारें । उन से भी श्रेष्ठीने कमल का वृत्तान्त सुना कर उसको प्रतिबोध करने की विनति की । यह सुन कर सरिने कमल को बुलाया। इस पर वह आकार सूरि के समीप