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___ श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
पड़ा लाभ हुआ है तो फिर यदि दृढ श्रद्धा से उस धर्म का पालन किया हो तो न जाने कितना बड़ा लाभ प्राप्त हो ? ऐसा विचार कर उसने शुद्ध हृदय से गुरुमहाराज को आमं. त्रण कर उन से श्रावक के बारह व्रत ग्रहण किये और उन व्रतों का आराधन कर स्वर्ग सिधारा ।
सर्वज्ञ मूरिने नास्तिक कमल को भी शास्त्र की युक्तियों से धर्म में दृढ बनाया । ऐसे श्रेष्ठ आचार्य ही भव्य पुरुषों की जड़ता को दूर करने में समर्थ हो सकते हैं। इत्युपदेशप्रासादे द्वितीयस्तंभे पंचविंशतितमं
व्याख्यानम् ॥ २५॥
व्याख्यान २६ वा उपदेशलब्धि पर नंदिषेण मुनि का दृष्टान्त
किसी ग्राम में एक ब्राह्मण रहता था । धन के गर्व से कुबेर की भी स्पर्धा करें उतना धन उसके पास था। एक बार उसने यज्ञ का आरम्भ किया जिस में एक लक्ष ब्राह्मण भोजन करनेवाले थे। उस काम में सहायता की आवश्यकता होने से उसने एक गरीब जैन ब्राह्मण को कहा कि तू मुझे इस कार्य में सहायता कर । ब्राह्मणों के भोजन के. पश्चात् जो कुछ घी, अन्न आदि बच रहेगा वह मैं तुझे तेरी