________________
व्याख्यान २६ :
: २३७ :
— लाख ब्राह्मणों को भोजन करानेवाला ब्राह्मण पापानुबंधी पुण्य उपार्जन करने से तथा विवेक रहित दान करने से अनेको भवों में अल्प अल्प भोगादिक सुख भोग कर किसी अरण्य में हस्ती हुआ । उसका नाम सेचनक पड़ा। इसका यह कारण था कि-इस हाथी का पिता जो हाथी था उसने ऐसा विचारा था कि-यदि मेरा पुत्र कोई हाथी होगा तो वह मुझे ही मार कर इन हाथनियों के टोले का स्वामी होगा इसलिये वह हाथी अपनी हाथनियों में से जो कोई हाथी (नर) को जन्म देती तो वह उस बच्चों को मार डालता था । एक बार एक हाथनी के प्रसूति का समय आया तो उसने इस भय से कि-वह उसके बच्चे को भी मार डालेगा उस हाथी को भूलाकर एक तापस के आश्रम में जाकर वहां एक हाथी (नर) को जन्म दिया जिस को तपस्वी कुमारोंने पालपोष बड़ा किया । उन तपस्वी कुमारों की संगति से वह हाथी (बालक) भी अपनी सूंढ में पानी लेकर वृक्षों को सींचा करता था इस से उसका नाम सेचनक रक्खा गया था। ____एक बार वह सेचनक हाथी घूम रहा था कि-उसने हथनियों के यूथ के स्वामी पहलेवाले हाथी याने उसके पिता को देखा और उसके साथ युद्ध कर उसको मार कर खुद यूथ का स्वामी हो गया । फिर उसने उसकी माता का प्रपंच जानकर नया हाथी उत्पन्न नहीं होने देने के लिये उसने उन तपस्वियों के आश्रम को नष्ट कर दिया इसलिये