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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : खेदित तपस्वी उसका वैर लेने के लिये श्रेणिक राजा के पास जाकर उस सेचनक की प्रशंसा की कि-हे राजा ! चत्वारिंशत्समधिकचतुःशतसुलक्षणः । स द्वीपो भद्रजातीयः सप्तांगं सुप्रतिष्ठितः ॥१॥
भावार्थ:-चार सो चालीस शुभ लक्षणों से युक्त और सातों अंगो में सुप्रतिष्ठित एक भद्र जाति का हाथी अरण्य में फिरता है।
वह हाथी आप के राज्य में शोभा पाने योग्य है। यह सुनकर राजाने आदमियों को भेजकर कई उपायों से उसको पकडवाया और अनुक्रम से उस सेचनक को पट्ट हाथी बनाया जिस से राज्य के योग्य आहार, वस्त्रों आदि से पोषित होकर वह बहुत सुखी हुआ। एक बार जब वे तपस्वी नगरी में आये तो उन्होंने सेचनक से जाकर कहा किहमारे आश्रम को नष्ट करने का तुझे यह फल मिला है। इन वचनों से मर्मस्थान में विंधा हुआ वह हाथी आलानस्तंभ उखेड़ कर वन में जा कर फिर से तपस्वियों के आश्रम को नष्ट कर अत्यन्त उपद्रव करने लगा। राजाने अनेकों प्रयास किये किन्तु उस हाथी को कोई न पकड़ सका इसलिये राजाने नगर में दिढोरा पीटवाया कि-कोई भी शक्तिशाली पुरुष उस हाथी को पकड़ कर भेंट करें। यह सुन कर