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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
व्याख्यान २५ वां
दूसरे धर्मकथक नामक प्रभावक के विषय में व्याख्यानावसरे लब्धि, यः प्रयुज्योपदेशकः । स धर्मकथको नामा, द्वितीयोऽपि प्रभावकः ॥
भावार्थ:- व्याख्यान के समय जो मुनि लब्धि का उपयोग कर उपदेश करते हैं वे धर्मकथक नामक दूसरे प्रभावक कहलाते हैं ।
व्याख्यान में लब्धि अर्थात् अनुयोग के समय अपनी शक्ति प्रगट कर हेतु, युक्ति और दृष्टान्तोंद्वारा दूसरों को जो प्रतिबोध करें वे ही सूरि धर्मकथा कहने योग्य होते हैं, परन्तु जो सूरि घड़े में स्थित दिपक के सदृश मात्र खुद को ही प्रकाश करते हैं वे धर्मकथक नहीं कहला सकते । इस प्रसंग पर सर्वज्ञ सूरि का दृष्टान्त प्रशंसनीय है
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सर्वज्ञ सूरि का दृष्टान्त
श्रीपुर में श्रीपति नामक एक श्रेष्ठी रहता था वह समकित को धारण करनेवाला था । उसके कमल नामक एक पुत्र था । वह धर्म से पराङ्मुख और सातों व्यसनों में तत्पर था । वह देव गुरु का दर्शन भी नहीं करता था उसको एक बार उसके पिता ने उपदेश दिया कि -
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