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व्याख्यान २४ :
: २२३ : कुमार के अतिरिक्त अन्य किसी को भी पतिरूप से ग्रहण नहीं करूंगी। एक समय वज्रस्वामी पाटलीपुर पधारे जिनके आने की खबर सुन कर धनश्रेष्ठि एक करोड़ द्रव्य सहित रुक्मिणी को साथ लेकर गुरु के पास गये और उनको वन्दना कर बोला कि - हे सूरि ! इस करोड़ द्रव्य सहित आप मेरी पुत्री को ग्रहण करें (विवाह करें ) अन्यथा यह आत्महत्या करेगी । वज्रस्वामीने उत्तर दिया कि - हम साधु मलमलिन गात्रवाली स्त्रियों की इच्छा भी नहीं करते इत्यादि वचनोंद्वारा रुक्मिणी को धर्मोपदेश दिया जिस से उसको वैराग्य उत्पन्न होने से उसने शीघ्र ही उनके पास दीक्षा ग्रहण की ।
एक बार बारह वर्षियदुष्काल पड़ने से समग्र संघ अत्यन्त व्याकुल हो गया । यह देखकर वज्रस्वामीने सर्व संघ को एक कपडे पर बिठाकर आकाशगामिनी विद्या के बल से सुभिक्षापुरी (सुकालवाली नगरी ) को ले गये । वहां रहते रहते दिवस निर्गमन होने पर पर्युषण पर्व आया । उस समय उस नगरी के राजाने बौद्ध होने से उनको जिनालय के लिये पुष्प देने का निषेध कर दिया । यह बात संघने वज्रस्वामी से निवेदन की, अतः सूरि आकाशगामिनी विद्याद्वारा माहेश्वरी पुरी गये। वहां पर उनके पिता का मित्र एक माली रहता था जिसको पर्युषण के उत्सव की बात कह कर