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व्याख्यान २४: .
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सर्व विद्वानों को पराजय कर दिया इस से खेदित हो राजा स्वयं धनपाल के पास जा उसे खुश कर आदरसत्कारपूर्वक वापस अपनी नगरी में ले आया । धनपाल का आगमन सुनकर वह विदेशी पंडित भयभीत हो रात्री के समय गुप्त रूप से भग गया । लोक मे जैनधर्म की अत्यन्त प्रशंसा हुई। धनपाल राजा के पास सुख से रहा और धर्म का आराधन कर अन्त में स्वर्ग सिधारा ।
जिस प्रकार द्रव्य से मिथ्यात्वियों के साथ परिचय होने पर भी भाव से पापसंग के नाश की स्पृहावाले धनपाल ने सर्व दोष रहित समकित का दृढ़ता से पालन किया उसी प्रकार सर्व जीवों को भी करना चाहिये । इत्युपदेशप्रासादे द्वितीयस्तंभे त्रयोविंशतितमं
व्याख्यानम् ॥ २३ ॥
व्याख्यान २४ वां छट्ठा प्रभावक सम्बन्धी अधिकार
(पहला प्रवचन प्रभावक विषय में) कालोचितं विजानाति, यो जिनोदितमागमम् । स प्रावचनिको ज्ञेयस्तीर्थं शुभे प्रवर्तकः ॥१॥