________________
: २१८ :
__श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
भावार्थ:--जो मुनि जिनप्ररूपित आगम की समयानुसार प्ररूपणा कर सकते हैं तथा तीर्थ को शुभ मार्गानुगामी बना सकते हैं, उनको प्रवचनप्रभावक कहते हैं।
काल अर्थात् सुखमादुखमादिके समय के विषय में यथायोग्य जिनप्रणीत सिद्धान्त को गौतमादिक के सदृश जो सूरि जानते हो तथा तीर्थ अर्थात् चतुर्विध संघ को शुभ मार्ग में (धर्ममार्ग में) प्रवृत्त कर सक सकते हो उनको प्रवचनप्रभावक समझना चाहिये । इसका भावार्थ निम्न लिखित वज्रस्वामी के चरित्र से जाना जा सकता है।
वज्रस्वामी का दृष्टान्त यः पालनस्थः श्रुतमध्यगीष्ट, षाण्मासिको यश्चरिताभिलाषी । त्रिवार्षिकः संघममानयद्यः, श्रीवजनेता न कथं नमस्यः ॥१॥
भावार्थ:--जिसने झूले में सोते सोते श्रुत का अभ्यास किया, जो छ महिने की आयु में ही चारित्र ग्रहण करने के अभिलाषी हुए और जिन्होंने तीन वर्ष की आयु में ही संघ
१ चोथा आरा आदि ।