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व्याख्यान २४ :
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को मान दिया, उन वज्रस्वामी को क्यों न नमस्कार किया जाय?
तुम्बवन के रईस धनगिरि नामक श्रेष्ठिने अपनी सुनन्दा नामक गर्भवती स्त्री को छोड़ कर दीक्षा ग्रहण की । उचित समय पर सुनन्दा को गर्भ से एक पुत्र उत्पन्न हुआ। प्रसव समय ही माता के समीपवृत्ति स्त्रियों के मुंह से पिता की दीक्षा की बात सुन कर नवजात शिशु को जातिस्मरण हुआ इसलिये माता को उद्वेग उपजाने के लिये वह निरन्तर रोने-चिल्लाने लगा। उसके रोने-चिल्लाने से अत्यन्त खेदित हो कर सुनन्दाने कायर हो कर विचार किया कि-यदि इसका पिता यहां आजाय तो इस बालक को उसे भेट कर . मैं सुखपूर्वक रहूँ। उसी समय धनगिरि सहित सिंहगुरु का उस ग्राम में आना हुआ ! मध्याह्न समय धनगिरिने आहार लेने जाने की गुरु से आज्ञा मांगी तो गुरुने कहा कि-आज जो तुझे सचित्त या अचित्त मिल जाय उसे तू बिना बिचारे ही ग्रहण करलेना । धनगिरि ग्राम में जाकर गोचरी के लिये फिरते फिरते अनुक्रम से सुनन्दा के घर जा पहुँचें । वह अपने पति को देख कर बोली कि-हे पूज्य ! इस तुम्हारे पुत्र को तुम ले जाओ । ऐसा कह कर उसने उस बालक को साधु के पात्र में रख दिया और उसे धर्मलाभ देकर धनगिरि उस बालक को गुरु के पास ले गये । दूर से वज्र के