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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : तत्पश्चात् राजाने धनपाल पंडित से कहा कि-तू मेरी मृगया का वर्णन कर । इस पर धनपाल बोला कि
रसातलं यातु यदत्र पौरुषं, कुनीतिरेषाऽशरणो ह्यदोषवान् । निहन्यते यद्बलिनातिदुर्बलो, हा हा महाकष्टमराजकं जगत् ॥ १॥
भावार्थ:-यह वराह ऐसा कहता है कि-हे राजा! तेरा पुरुषार्थ रसातल में जावे। यह प्रत्यक्ष अनीति है, क्यों कि शरण रहित और निर्दोष दुर्बल प्राणियों की बलवान द्वारा हत्या होती है । अहो महादुःख की बात हैं कि यह जगत् राजा रहित है।
पदे पदे सन्ति भटा रणोत्कटा, न तेषु हिंसारस एष पूर्यते। धिगीदृशं ते नृपते ! कुविक्रम,
कृपाश्रये यः कृपणे मृगे माये ॥२॥ भावार्थ:-और यह मृग कहता हैं कि-हे राजा! संग्रामशूरवीर योद्धा इस दुनिया में कई स्थान पर हैं परन्तु फिर भी एसा उनके विषय में तेरा हिंसारस पूरा नहीं