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व्याख्यान २३ :
. २०३: समय ओर वहां ठहर धनपाल को निश्चल श्रावक बना कर अन्यत्र चले गये।
धनपाल पंडित भोजराजा की सभा में पांचसो पंडितों में मुख्य पंडित हुआ। एक बार भोज राजा पांचसो पंडितों को साथ लेकर मृगया के लिये बन में गये। वहां राजाने एक बाण से एक हरिन का शिकार किया इससे अन्य सर्व पशु चारों ओर भगने लगे, जिनको देख कर राजाने कवि से पूछा किकिं कारणं तु कविराज ! मृगाश्च एते, व्योम्न्युत्पतन्ति विलिखंति भुवं वराहाः ॥ .
हे कविराज ! इन मृगों के आकाश में कूदने व वराहों के भूमि को खोदने का क्या कारण है ? --एक कविने उत्तर दिया किदेव ! त्वदनचकिताः श्रयितुं प्रयान्ति, एके मृगांकमृगमादिवराहमन्ये ॥ १॥
हे स्वामी ! आपके शस्त्र से भयभीत होकर वे मृग चन्द्र में स्थित मृग का आश्रय लेने के लिये ऊपर की ओर कूदते हैं और ये वराह आदिवराह का आश्रय लेने के लिये पाताल में जाने की अभिलाषा करते हैं।