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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
पालीरूढगुमालीतलसुतशयितस्त्रीप्रणीतैश्च गीतैभीति प्रक्रीडनाभिः क्षितिप ! तव चलच्चक्रवा-'
कस्तटाकः ॥
भावार्थ:- प्रशस्त हँसोद्वारा, चपल कमलोंद्वारा, रंग को प्राप्त हुए तरंगोद्वारा, गंभीर जलद्वारा, चंचल बगुले के समूह के कवलरूप मत्स्योंद्वारा, पाल पर खडे वृक्षों पर झूला डाल कर बालकों को झुलाते समय गाये जानेवाले स्त्रियों के मनोहर गानद्वारा तथा अन्य अनेक क्रीडाओं युक्त और चक्रवाक पक्षियों का मिथुन जिसमें स्थित हैं ऐसा यह सरोवर अत्यन्त शोभायमान है ।
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तत्पश्चात् राजा की आज्ञा से धनपाल बोला कि - हे राजा ! एषा तटाकमिषतो वरदानशाला, मत्स्यादयो रसवतीप्रगुणा बभूव । पात्राणि यत्र बकसारसचक्रवाकाः, पुण्यं क्रियद्भवति तत्र वयं न विद्मः ॥ १ ॥
भावार्थ:- यह सरोवर मीष से श्रेष्ठ दानशाला है जिसमें मत्स्य आदि जल-जन्तुओंरूपी अटुट भोजन तैयार है, इसमें पात्ररूप से ( खानेवाले ) बगुला, सारस और "चक्रवाक आदि पक्षी हैं फिर इससे कैसा पुण्य होता होगा यह तो हम नहीं जान सकते ।