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व्याख्यान २३:
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से मेरी पराजय हुई इस प्रकार विचार करता हुआ धनपाल बोला कि “कस्य गृहे वसति तव साधो-हे साधु ! तुम किस के घर पर ठहरेगें?" मुनिने उत्तर दिया कि-" यस्य रुचिर्वसति मम तत्र-जिसको हमे ठहराने की इच्छा होगी उसीके घर पर हम ठहरेगें । " यह सुन कर मुनि को विद्वान जान कर धनपाल अपने घर ले गया। वहां धनपाल भोजन करने बैठता ही था कि मुनि का स्मरण हो आने से उसने मुनि को बहोरने के लिये बुलाया। उसी दिन धनपाल को मारने के लिये उसके शत्रुने उसके भोजन मोदक में विष मिला दिया था । उन मोदक को धनपाल मुनि को बहराने लगा। यह देख कर मुनिने कहा कि-ये मोदक हमारे लिये अकल्पनीय है । धनपालने कहा-क्यों ? क्या ये विषमिश्रित है ? मुनिने कहा कि-हाँ, इनमें विष मिला हुआ है । यह सुन कर धनपालने पता चलाया तो सचमुच उनमें किसी शत्रु का विष मिला देना पाया गया। इससे आश्चर्यचकित हो कर अपने बचानेवाले मुनि को उसने पूछा कि-हे मुनि ! इन मोदक विषमिश्रित होने का पता तुमको किस प्रकार चला ? मुनिने उत्तर दिया कि-हे धनपाल ! दृष्ट्वान्नं सविषं चकोरविहगो धत्ते विरागंदृशोहंसः कूजति सारिका च वमति क्रोशत्यजत्रं शुकः। विष्टांमुश्चतिमर्कटः परभृतःप्राप्नोति मृत्युंक्षणात् क्रौञ्चौ माद्यति हर्षवांश्चनकुलः प्रीतिचधत्ते द्विकः॥