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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : भावार्थ:-विषयुक्त भोजन देख कर चकोर पक्षी नेत्र में विराग धारण करता है ( नेत्र बन्द करता है ), हँस शब्द करते हैं, सारिका वमन करती है, पोपट बारम्बार आक्रोश करता है, बन्दर विष्टा करता है, कोयल क्षणभर में मृत्यु प्राप्त करती है, क्रौंच पक्षी खुश होकर नृत्य करता है, नोलिया हर्षित होता है और कौआ प्रसन्न होता है।
ऐसे चिह्न मौजुद होने से मैंने इस पिंजरे में बन्द पोपट के आक्रोश से यह जाना है कि-यह मोदक विषमिश्रित हैं। यह सुन कर विस्मित हो धनपालने मुनि को दही लाकर बहराना चाहा, इस पर मुनिने उत्तर दिया कि-यह दही भी तीन दिन का होनेसे हमारे लिये अकल्पनीय है । धन पालने पूछा कि क्या इस दही में जीवों की उत्पत्ति हो गई है ? मुनिने हाँ कह कर उसको विश्वास दिलाने के लिये उसमें अलता रस डाल कर उसको जीव बतलाये । फिर धनपालने मुनि को निर्दोष आहार भेट किया । मुनि के जाने पश्चात् धनपाल भोजन करने बैठा । भोजन समाप्त कर वह मुनि के पास गया । बातें करते हुए धनपालने कहा कि-हे मुनि ! तुमको देख कर मुझे मेरे भाई का बारंबार स्मरण हो आता है । मुनिने कहा कि-हे वयस्य ! तेरे सामने ( यह मैं ) तेरा भाई ही बैठा हुआ हूँ। ऐसा कह कर इसकी प्रतीति के लिये पूर्वावस्था की निशानिये कह बतलाई । यह सुन कर विश्वास हो जाने से धनपाल अति आनन्दित हुआ। शोभन मुनि कुछ