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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
वज्रकर्ण से कहा कि - हे वज्रकर्ण ! तू बिना अंगुठी पहने हुए हमारे स्वामी के पास आकर उसको प्रणाम कर सुखसे राज्य भोग वरना तेरा नाश होगा। यह सुन कर वज्रकर्णने उत्तर दिया कि - हे दूत ! तेरे राजा को कह कि मुझे राज्य से कोई प्रयोजन नहीं है परन्तु मुझे एक मात्र धर्मद्वार दें कि जिससे मैं दूसरे स्थान पर जाकर मेरे नियम का पालन कर सकूँ । यह सुन कर दूतने जा कर सिंहरथ से कहा, इससे सिंहरथ क्रोधयुक्त होकर उस पुर को घेरे पड़ा रहा । अतः हे रामचन्द्र ! इस देश के उजड़ होने का यह कारण है ।
यह सब वृत्तान्त सुन कर रामचन्द्रने लक्ष्मण से कहा कि - हे वत्स ! हम को भी वहां जाकर आश्चर्ययुत बात देखनी चाहिये और वज्रकर्ण का साधर्मिवात्सल्य करना चाहिये ( उसकी सहायता करनी चाहिये ) ऐसा कह कर रामचन्द्र, लक्ष्मण तथा सीताने दशपुर की ओर चल दिये । ari राम और सीता को नगर के बाहर छोड़ कर लक्ष्मण अकेला ग्राम में गया । वज्रकर्णने लक्ष्मण को भोजन करने के लिये निमन्त्रण दिया । इस पर लक्ष्मणने उत्तर दिया किमेरे ज्येष्ठ भ्राता राम उनकी स्त्री सहित ग्राम के बाहर देवकुल में ठहरे हुए हैं। यह सुन कर वज्रकर्णने उनको भी बुलवा कर उन तीनों को आदर सहित भोजन कराया । फिर राम के कहने से लक्ष्मणने सिंहरथ राजा को जाकर कहा कि - हे राजा ! मुझे रामचन्द्रने तुम्हारे पास भेजा है ।