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व्याख्यान १८ :
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उसने तुमको कहलाया है कि तुम वज्रकर्ण के साथ युद्ध मत करो । सिंहरथने उत्तर दिया कि मैं भरत राजा की आज्ञा सिरोधार्य करता हूँ परन्तु राम की आज्ञा का पालन नहीं कर सकता । इस पर लक्ष्मणने कहा कि यदि ऐसा है तो युद्ध के लिये तैयार हो जा । यह सुन कर क्रोधित हुआ सिंहरथ हाथी पर आरूढ़ होकर संग्राम करने को तैयार हो गया । उसको एक क्षणमात्र में जीत कर लक्ष्मणने पृथ्वी पर गिरा कर बांध लिया। तब उसने कहा कि- मैने अज्ञानवश आपका अपमान किया है । आप मेरे स्वामी हैं, अतः आपकी जैसी इच्छा हो वैसा कीजिये । यह सुन कर लक्ष्मण ने वज्रकर्ण को उज्जैनी का राजा बना कर सिंहरथ को उसका सेवक बना के मुक्त किया। फिर सब अपने अपने स्थान को लौट गये । वज्रकर्ण अपने लिये हुए नियम का यथास्थित पालन कर सर्व जीवों को खमा कर स्वर्ग में गया । वहां से चव कर मोक्षपद प्राप्त करेगा ।
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हे भव्य जीवों ! इस वज्रकर्ण राजा का चरित्र सुन कर कायशुद्धि के इच्छुक को जिनेन्द्र के अतिरिक्त अन्य किसी के भी नमन नहीं करना चाहिये जिससे तुमको शीघ्र ही मुक्तिरूपी स्त्री का आलिंगन होगा ।
इत्यब्ददिनपरिमितोपदेशप्रासादद्वितीयस्थंभस्य
अष्टादशं व्याख्यानम् ॥ १८ ॥