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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : व्याख्यान २२ वां मिथ्यात्व की प्रशंसा नामक चोथे दृषण के
. विषय में । अतीतानागता ये च, सन्ति वा येऽन्यलिंगिनः। तेषां प्रशंसनं शंसाभिधो दोषश्चतुर्थकः ॥ १ ॥
भावार्थ:-जो अन्यलिंगी हो गये हैं, होनेवाले हैं और वर्तमानकाल में मोजुद हैं उनकी प्रशंसा करना मिथ्यात्व की प्रशंसा नामक चोथा समकित का दूषण कहलाता है।
इस दोष के सर्व से और देश से दो भाग हैं । इनमें सर्व दर्शन सत्य है ऐसा मान कर सब की प्रशंसा करना सर्व से प्रशंसा दोष कहलाता है और बुद्ध का अमुक वचन अथवा सांख्य का अमुक वचन अधिक श्रेष्ठ हैं ऐसा कह कर एकाद मत की प्रशंसा करना देश से प्रशंसा दोष कहलाता है। इन दोनों प्रकार के सम्यक्त्व के दोषों का त्याग करना चाहिये। इस विषय के पुष्टि में महानिशीथ सूत्र में सुमति और नागिल का दृष्टान्त दिया गया है जो इस प्रकार है
सुमति नागिल का दृष्टान्त । मगध देश में कुशस्थल नामक नगर में जीवाजीवादिक तत्त्वों को जाननेवाले सुमति और नागिल नामक दो धनाढ्य भाई रहते थे। कुछ समय के बाद किसी पापकर्म के उदय