________________
व्याख्यान २१ :
: १८७ :
प्सा की । तत्पश्चात् कुछ समय बाद वह जुगुप्सारूप पाप कर्म की आलोचना किये बिना ही मृत्यु को प्राप्त हो गई। वह यहां राजगृह नगरी में ही एक गणिका के उदर में पुत्रीरूप से उत्पन्न हुई है। वह उसके दुष्कर्म के कारण गर्भ में रहने पर भी माता को अत्यन्त असुख उत्पन्न करने लगी इस से उस गर्भ से उद्वेग पाकर उस गणिकाने गर्भपात की अनेकों
औषधिय की परन्तु उसका आयुष्य दृढ़ होने से गर्भपात नहीं हुआ और अन्त में समय के पूर्ण होने पर ही उस गणिका से पुत्री प्रसव हुआ। जन्म से ही उसकी दुर्गंध दुःसह होने से उसको उस गणिकाने विष्टा के समान त्याग दिया, जिसको तुमने मार्ग में पड़ी हुई देखी है। ___ इस प्रकार का उसका पूर्व जन्म का वृत्तान्त सुन कर राजा श्रेणिकने प्रभु से पूछा कि-अब उसकी क्या गति होगी। भगवानने उत्तर दिया कि-हे राजा ! उस दुगंधाने पूर्वकृत मुनि के जुगुप्सारूप अशुभ कर्म का समग्र फल भोग लिया है, अब वह मुनि को दिये हुए दान के भोगरूप फल को भोगनेवाली है, उसका शरीर कस्तूरी और कर्पूर से भी अधिक सुगन्धित हो गया है । हे राजा ! जब वह आठ वर्ष की आयु की होगी तब तेरी पट्टराणी होगी । इसकी यह निशानी है कि तुम दोनों पाशे का खेल खेलोगे जिस में यह शर्त होगी कि जो जीतेगा वह हारनेवाले के पृष्ठ पर चढेगा! उस खेल में तेरी हार होगी और वह दुगंधा तेरी पृष्ठ पर