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व्याख्यान २१ :
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रम्या बालमरालमन्थरगतिमत्तेभकुंभस्तनी। बिंबोष्टी परिपूर्ण
चन्द्रवदना भुंगालिनीलालका ॥१॥ भावार्थ:-वह सुन्दर स्त्री युवावस्था से सुशोमित, अति मिष्ट वचनवाली, सौभाग्यरूप भाग्य की उदयवाली, कर्ण पर्यत दीर्घ नेत्रवाली, सिंह सदृश कुश कटिप्रदेशवाली, प्रगल्मपन के गर्व से युक्त, बाल राजहंस के सदृश मंद एवं मनो. हर सुन्दर चालवाली, मदोन्मत्त हाथी के कुंभस्थल जैसे पुष्ट स्तनवाली, पके हुए बिंबफल के सदृश रक्त ओष्टवाली, पूर्णिमा के चन्द्र सदृश कान्तिमान मुखवाली और भ्रमरश्रेणि के सदृश श्याम वर्ण के केशवाली थी।
इस प्रकार उस मनोहर एवं रूपवान गोपपुत्री को देख श्रेणिक राजा उस पर अत्यन्त मोहित होकर कामातुर हो गया और अभयकुमार से गुप्त रह कर राजाने उसके वस्त्र के छोर पर अपनी मुद्रिका बांध दी । कुछ समय पश्चात् राजाने अपने हाथ की ओर दृष्टि फेंक कर अभयकुमार से कहा कि-मेरी मुद्रिका यहां खो गई है इस लिये जिसने उसे उठाई हो उस चोर की खोज कर उसको मेरे पास ला । यह सुन कर अभयकुमारने अपने पिता का वचन स्वीकार कर उद्यान के सर्व दरवाजे बंध करा कर केवल एक ही दरवाजे से सर्व