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व्याख्यान २० :
. १७९ : सर्व प्रकार के कल्याण का स्थानभूत वसंतपुर नगर है, जहां जितशत्रु नामक राजा राज्य करता है। उसके मतिसामर नामक मंत्री है। एक बार राजाने चन्द्रमा के किरण के सदृश श्वेत रंग के दो अश्वों को देख कर प्रसन्न हो उन के मालिक को उसका मूल्य चुका कर उनको खरीद किये। बाद में उनकी परीक्षा करने के लिये मंत्री सहित दोनों पर स्वार होकर मंडलिभ्रमादि गति कराने लगे। उस समय बन में रहनेवाले लोगोंद्वारा त्रासित किये जाने से, वे अश्व कुशिष्य के समान विपरीत शिक्षा पाये हुए होने से, पवन गति के समान दौड कर उनको किसी बड़े भयंकर जंगल में ले गये । वहां श्रम और क्षुधा से पीडित राजा
और मंत्रीने बन के फल खा कर कई दिन निर्गमन किये। कई दिन गुजरने पर उनका सैन्य जो उनको ढूंढते ढूंढते उनके पीछे आता था उन से मिला, जिस के साथ राजा तथा मंत्री अपने नगर में गये । राजा स्वयं मूर्ख होने से उसने अपने रसोइये को कहा कि-मेरे लिये सर्व प्रकार पकवान तथा शाक आदि तैयार कर, क्योंकि मैं बहुत दिनों का भूखा हूँ। रसोइये ने राजा की आज्ञानुसार भिन्न भिन्न सर्व प्रकार के पकवान बनाकर राजा के सामने रक्खे। राजा भी क्षुधापीडित था इसलिये जैसे बड़वानल समुद्र का पान करने पर भी तृप्त नहीं होता उसी प्रकार राक्षस के समान सर्व आहार करने पर भी राजा को तृप्ति नही हुई । अन्त में