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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
इस के बाद देवकीने सात स्वप्न से सूचित वासुदेव (कृष्ण) को जन्म दिया ( इस चरित्र का विस्तार श्री धर्मदास गणिकृत ग्रंथ से जाना जा सकता है ) । आयुष्य पूर्ण होने पर वसुदेव मृत्यु प्राप्त कर स्वर्ग सिधारें ।
तीसरे वैयावृत्य नामक लिंग के विषय में दृढ़ निश्चयवाले नंदिषेण मुनिने राजाओं से भी प्रशंसनीय पदवी को प्राप्त कर अन्त में मोक्षसुख को प्राप्त किया अतः हे भव्य प्राणी ! तुम भी वैयावृत्य के लिये प्रयास करो ।
इत्यब्ददिन परिमितोपदेशप्रासादग्रंथस्य वृत्तौ प्रथमस्थंमे एकादशं व्याख्यानम् ॥ ११ ॥
व्याख्यान १२ वां ।
तीसरा विनय द्वार ।
अर्हत्सिद्धमुनीन्द्रेषु, धर्मचैत्यश्रुतेष्वपि । तथा प्रवचनाचार्योपाध्यायदर्शनेष्वपि ॥ १ ॥ पूजा प्रशंसनं भक्तिरवर्णवादनाशनम् । आशातना परित्यागः, सम्यक्त्वे विनया दश ॥२॥
भावार्थ: - अईत्, सिद्ध, मुनि, धर्म, चैत्य, श्रुत, प्रवचन, आचार्य, उपाध्याय और दर्शन के विषय में पूजा, प्रशंसा, भक्ति, अवर्णवाद का नाश और आशातना