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________________ :: ११४ : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : इस के बाद देवकीने सात स्वप्न से सूचित वासुदेव (कृष्ण) को जन्म दिया ( इस चरित्र का विस्तार श्री धर्मदास गणिकृत ग्रंथ से जाना जा सकता है ) । आयुष्य पूर्ण होने पर वसुदेव मृत्यु प्राप्त कर स्वर्ग सिधारें । तीसरे वैयावृत्य नामक लिंग के विषय में दृढ़ निश्चयवाले नंदिषेण मुनिने राजाओं से भी प्रशंसनीय पदवी को प्राप्त कर अन्त में मोक्षसुख को प्राप्त किया अतः हे भव्य प्राणी ! तुम भी वैयावृत्य के लिये प्रयास करो । इत्यब्ददिन परिमितोपदेशप्रासादग्रंथस्य वृत्तौ प्रथमस्थंमे एकादशं व्याख्यानम् ॥ ११ ॥ व्याख्यान १२ वां । तीसरा विनय द्वार । अर्हत्सिद्धमुनीन्द्रेषु, धर्मचैत्यश्रुतेष्वपि । तथा प्रवचनाचार्योपाध्यायदर्शनेष्वपि ॥ १ ॥ पूजा प्रशंसनं भक्तिरवर्णवादनाशनम् । आशातना परित्यागः, सम्यक्त्वे विनया दश ॥२॥ भावार्थ: - अईत्, सिद्ध, मुनि, धर्म, चैत्य, श्रुत, प्रवचन, आचार्य, उपाध्याय और दर्शन के विषय में पूजा, प्रशंसा, भक्ति, अवर्णवाद का नाश और आशातना
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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