________________
: १२४ :
श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तरः देव को उद्देश कर उसकी आराधना के लिये उपवास किया और गंध, धूप तथा पुष्पादिक से उसकी पूजा कर अपने घर चले गये। यह देख कर उस वृक्ष का अधिष्ठायक देव अपने स्थान के भंग होने की आशंका से भयभीत हो कर अभयकुमार के समीप जा कर बोला कि " हे मंत्री! मैं सर्व ऋतुओं के फल पुष्पों से युक्त सुन्दर नन्दन वन सदृश बाग बना कर, घुमनेवाला प्राकार बना उसके बीच में एक स्तंभवाला महल तुम्हारे लिये निर्मित कर दूंगा परन्तु तुम मेरे निवासस्थानरूप उस वृक्ष को काटने की आज्ञा मत देना ।" यह सुन कर अभयकुमारने उसकी प्रार्थना स्वीकार की और उस अद्भूत शक्तिवाले व्यन्तरने तत्काल अपने कथनानुसार महल बना दिया । राजा की आज्ञा से चेलणा देवी उस महल में रह कर पनद्रह में रहनेवाली लक्ष्मी के समान निरन्तर लीला करने लगी।
एक वार उस नगर में रहेनेवाले किसी चांडाल की गर्भिणी स्त्री को अकाल में केरी खाने का दोहद हुआ। उसने उसके पति को केरी लाने को कहा । उसने उत्तर दिया कि-इस ऋतु में केरी नहीं मिल सकती फिर कहां से ला कर दूँ ? स्त्रीने कहां कि-चेलणा रानी के उद्यान में सर्व ऋतुओं के फल एवं पुष्प हैं इसलिये वहां से लाकर दें। चांडालने उत्तर दिया कि-उस वन में राजा का बहुत बन्दोबस्त है परन्तु किसी उपाय से लाउंगा। चाण्डाल रात्रि