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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : सर्व धर्म एकान्तवादी तथा अनेकों दोषयुक्त होने से आराधना करने योग्य नहीं हैं।" फिर राजाने कहा कि " हे शीलवंती ! गंगा, प्रयाग आदि तीर्थों में कौनसा तीर्थ संसारतारक हैं ?" जयसेनाने उत्तर दिया कि " हे राजा! लोक में अड़सठ तीर्थ कहलाते जाते हैं किन्तु वे सब आत्म धर्म की पुष्टि करनेवाले नहीं हैं । तीर्थ तो एक मात्र सिद्धाचल ही है क्यों कि उस गिरि पर कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा को श्री ऋषभदेव के पुत्र द्राविड़ और वालिखील मुनिने दस करोड़ साधुओं सहित मुक्ति को प्राप्त की है । फाल्गुन शुक्ला दशमी के दिन नमि और विनमि नामक मुनिने दो करोड़ साधुओं सहित सिद्धपद को प्राप्त किया है । फाल्गुन शुक्ला अष्टमी के दिन श्री ऋषभदेवस्वामी नवाणु पूर्व वखत उस गिरि पर आये हैं। श्री शांतिनाथस्वामीने भी उस पर चातु
र्मास किया था। उस समय मुनिवेष तथा श्रावकवेष को मिला कर सित्तर करोड़ मनुष्योंने सिद्धि प्राप्त की थी। दूसरे तीर्थकर श्रीअजितनाथस्वामी के हाथ से दीक्षित पंचाणु हजार साधुओंने उस पर्वत पर चातुर्मास किया था। उनमें से कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा के दिन दस हजार साधुओंने केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया था। आसोज शुक्ला पूर्णिमा को पांच पांडव वीस करोड़ साधुओं सहित सिद्ध हुए थे। फाल्गुन शुक्ला तेरस के दिन शांव और प्रद्युम्न कुमारने साढ़े तीन करोड़ साधुओं सहित मुक्तिपद को प्राप्त किया है।