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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : दिशा में क्षुद्रहिमाचल तक सर्व वस्तुओं को देखता हूं।" यह सुनकर गणधरने कहा कि “ इतना अवधिज्ञान होना गृहस्थी के लिये असम्भव है इस लिये तू मिथ्या दुष्कृत का त्याग कर।" आनन्दने कहा कि "हे भगवन् ! असत्य बोलनेवाले को मिथ्या दुष्कृत त्यागना चाहिये, अतः आप को त्याग करना चाहिये ।" यह सुनकर गौतम गणधर को शंका उत्पन्न हुई इस लिये उन्होंने प्रभु के पास जाकर उसका स्वरूप पूछा । प्रभुने उसी प्रकार बतलाया, इस पर गौतम गणधरने आनन्द के समीप जाकर मिथ्या दुष्कृत का त्याग किया। ___ तत्पश्चात् आयुष्य के पूर्ण होने पर आनन्द श्रावक पंच नमस्कार का स्मरण करता हुआ मृत्यु प्राप्त कर सौधर्म कल्प में अरुणाभ नामक विमान में चार पल्योपम के आयु. ध्यवाला देव हुआ और वहां से चव कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर मोक्ष को प्राप्त करेगा।
यह चरित्र का उपासक दशांग तथा आनन्दसुन्दर ( वर्धमान देशना) में सविस्तर वर्णन किया गया है। ___ " हे श्रावक ! यह आनन्द श्रावक का चरित्र सुनकर आनन्द में तत्पर होकर मनःशुद्धि में निरन्तर आदरवाले बनो" इत्यन्ददिनपरिमितोपदेशप्रासादवृत्तौ द्वितीयस्तंभे
षोडशं व्याख्यानम् ॥ १६ ॥