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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : अतिथि बना। कालिकसूरि आयुष्य का क्षय हो जाने पर कालधर्म को प्राप्त कर स्वर्ग के अलंकारभूत हुए । ___इस कालिकाचार्य के दृष्टान्त को सुन कर सर्व प्राणियों को मृत्यु के भय को भी छोड़ कर सत्य भाषण करना चाहिये, क्यों कि वचनशुद्धि से इस लोक में राजादिक से सन्मान मिलता है और परलोक में स्वर्ग का सुख मिलता है। इत्यब्ददिनपरिमितोपदेशप्रासादवृत्तौ द्वितीयस्तंमे
सप्तदशं व्याख्यानम् ॥ १७ ॥
व्याख्यान १८ वां
तीसरी कायशुद्धि खड्गादिभिर्भिद्यमानः, पीड्यमानाऽपि बन्धनैः । जिनं विनान्यदेवेभ्यो, न नमेत्तस्य सा भवेत्॥१॥
भावार्थ:-खड्गादिक से छेदे जाने और बंधनों से बांधे जाने पर भी जो मनुष्य श्रीजिनेश्वर के अतिरिक्त अन्य देव के आगे सिर न झुकावे उसे कायशुद्धि कहते हैं । . खड्ग आदि हथियारों से छेदे जाने और रज्जु, बेड़ी आदि बन्धनों से बांधे जाने तथा महान् संकट के उपस्थित होने पर भी जो पुरुष श्री जिनेन्द्र अतिरिक्त बुद्ध, शंकर, स्कंद आदि अन्य देवताओं को नमस्कार नहीं करता है उस