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व्याख्यान १६ :
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वहन करते हुए पांच वर्ष और पांच महिने' व्यतीत हुए। जिससे आनन्द श्रावक का बाह्य से शरीर और अन्तर से मन अति कृश हो गया। यह देखकर उसने चार शरणपूर्वक अनशन ग्रहण किया। उस प्रकार उसकी मनशुद्धि विशेष होनेसे उसको अवधिज्ञान उत्पन्न हो गया ।
उसी अवसर पर उस ग्राम के बाहर उद्यान में श्री वीरस्वामी का पदार्पण हुआ। श्रीवीरप्रभु को वन्दना कर उनकी आज्ञा लेकर गौतम गणधर गोचरी के लिये ग्राम में गये । वहां से आहार लेकर वापस लौटते समय अनेकों पुरुषों के मुंह से आनन्द श्रावक के अनशन का वृत्तान्त सुनकर गौतमस्वामी उसके पास शाता पूछने को गये । अपने समीप गणधर महाराज को आये हुए देखकर भक्तिभावद्वारा आनन्द श्रावकने उनके चरणकमल में प्रणामकर प्रश्न किया कि " हे पूज्य ! क्या श्रावक को भी अवधिज्ञान हो सकता है ?" गौतमस्वामीने उत्तर दिया कि " उत्तम श्रावक को हो सकता है" यह सुनकर आनन्द श्रावकने कहा कि "हे भगवन् ! मुझे ऐसा ज्ञान प्राप्त हुआ है इससे मैं ऊपर सौधर्म देवलोक तक, नीचे लोलुक नरकवास तक, तिरछा लवणसमुद्र में तीन दिशाओं में (पूर्व, पश्चिम और दक्षिण दिशाओं में ) पांचसो योजन और उत्तर
१ ग्यारह प्रतिमाओं के काल का योग लगाने से पांच वर्ष और छ महिने होता है ।