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व्याख्यान १५ :
: १४७ : श्रीकालस(कालिक)मुनिने एक हजार साधुओं सहित,श्रीसुभद्रमुनिने सातसो मुनियों सहित,श्रीरामचन्द्रने पांच करोड़ मुनियों सहित, श्रीराम के भ्राता भरतने तीन करोड़ मुनियों सहित, तथा श्रीवसुदेव की बहतर हजार स्त्रियों में से पेतीस हजार स्त्रियोंने उसी सिद्धगिरि पर सिद्धपद को प्राप्त किया है और अन्य सेंतीस हजार स्त्रियोंने अन्य स्थान पर सिद्धपद को प्राप्त किया है । अपितु देवकी और रोहिणी नामक वसुदेव की स्त्रिये तो आगामी काल में तीर्थंकर होनेवाली है । सुकोमल मुनि सिंहनी के किये उपसर्ग से कालधर्म को प्राप्त कर पंगुलगिरि( सिद्धाचल का एक हिस्सा) पर सिद्ध हुए हैं आदि अनन्त साधुगणोंने उस गिरि पर सिद्धपद को प्राप्त किया है और करेंगे।
चैत्र शुक्ला पूर्णिमा के दिन उस गिरि पर श्रीपुंडरीक गणधर पांच करोड़ मुनियों सहित सिद्ध हुए है, अतः हे राजा ! एक बार श्रीशत्रुजय के देखने से ( यात्रा करने से) सर्व तीर्थों की यात्रा का फल प्राप्त होता है।" इस प्रकार सब हाल सुन कर राजा आदि सर्व लोगोंने श्री जैनधर्म को तथा श्रीसिद्धाचल तीर्थ को स्वीकार किया-उसीको मानने लगे।
फिर राजाने जयसेना को बड़े उत्सवपूर्वक उसके घर भेजा । कुछ समय बाद जयसेनाने प्रव्रज्या ग्रहण कर अनुक्रम से तपस्या कर सिद्धपद को प्राप्त किया ।