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व्याख्यान १६ :
: १५१ : का वर्णन आगे के व्रत के अधिकार में कहा जायगा। सातवे व्रत में अनन्तकाय, अभक्ष्य और पन्द्रह कर्मादान का त्याग किया । दातुन में जेठीमध के काष्ठ के अतिरिक्त अन्य का त्याग कर किया । मर्दन के लिये शतपाक और सहस्रपाक तेल के अतिरिक्त अन्य तेल का त्याग किया । उद्वर्तन(पीट्ठी) के लिये गेहूँ और उपलेट के पिष्ट के अतिरिक्त अन्य का त्याग किया । स्नान के लिये उष्ण जल के आठ मिट्टी के घड़ो से अधिक जल का त्याग किया। पहिनने के लिये ऊपर और नीचे के दो वस्त्रों के अतिरिक्त अन्य को त्याग किया। विलेपन में चन्दन, अगर, कर्पूर और कुंकुम आदि के अतिरिक्त अन्य का त्याग किया। पुष्पों में पुंडरीक कमल, तथा मालती के पुष्पों के अतिरिक्त अन्य का त्याग किया । अलंकार में नामांकित मुद्रा(अंगुठी) तथा कान के दो कुण्डलों के अतिरिक्त अन्य का त्याग किया। धूप में अगर और तुरुष्क ( लोबान ) के अतिरिक्त अन्य का त्याग किया। पेय (पीने योग्य) आहार में मग, चना आदि तल कर किये हुए अथवा घी में तले हुए शुद्धता से बनाये हुए प्रवाही पदार्थ के अतिरिक्त अन्य का त्याग किया। पक्कान में घेवर और शकर के खाजे, भात में कलमशाली के चोखे, दाल में मुंग, उड़द और चने, घी में शरदऋतु में निकाला हुआ गाय का घी, शाक में मीठी डोडी और पलवल, मधुर पदार्थ में पल्यंक, अन्न में बड़ा, फल में