________________
• १५२ : - श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तरः क्षीरामलक(मीठा आंबला), जल में आकाश से पड़ा हुआ पानी, मुखवास में जायफल, लवंग, इलायची, ककोल और कपूर इन पांच वस्तुओं से मिश्रित तंबोल-इतनी चिजों को उपयोग में लाना और इनके अतिरिक्त अन्य सब चिजों का त्याग करना निश्चय किया।
इस प्रकार उसने जिनेश्वर के बारह व्रत ग्रहण किये। ( अन्य व्रतों का स्वरूप आगे बतलाया जायगा) फिर नवतत्त्व का स्वरूप जानकर वह आनन्द श्रावक अपने घर आकर उसकी शिवानन्दा नामक स्त्री से कहने लगे कि " हे प्रिया ! मैने आज जैनधर्म अंगीकार किया है । तू भी प्रभु के पास जाकर उस उत्तम धर्म को स्वीकार कर । ” यह सुनकर शिवानन्दा शीघ्र ही उसकी सखीयों सहित प्रभु के पास गई । जिनेन्द्र को वन्दना कर देशना श्रवण कर उसने भी श्रद्धापूर्वक श्रावकधर्म अंगीकार किया। - इस प्रकार देशविरति धर्म के पालन करनेमें तत्पर उन दम्पतीने चौदह वर्ष व्यतीत किये। एक बार मध्यरात्रि में जागृत हुआ आनन्द श्रावक धर्मचिन्तवन करने लगा कि "अहो! मेरी आयु रागद्वेष में-प्रमाद में बहुत व्यतीत हो गई है । कहा भी है किलोकः पृच्छति मे वार्ता, शरीरे कुशलं तव। कुतः कुशलमस्माकमायुर्याति दिने दिने ॥१॥