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व्याख्यान १३:
: १२९ : उसको दबा कर केरियों के चोरने के बारे में पूछा। चंडालने स्त्री का दोहद पूर्ण करने के लिये विद्या की सहायता से केरियों का लेना स्वीकार किया। उस चांडाल को राजा के पास लेजाकर अभयकुमारने उसका सब वृत्तान्त कहा । इस पर राजाने उसका वध करने की आज्ञा दी। इस पर अभयकुमारन कहा कि-हे स्वामी ! इसके पास से पहले दोनों अपूर्व विद्या ग्रहण करो, फिर जैसा योग्य प्रतीत हो वैसा करना। क्योंकिबालादपि हितं ग्राह्यममेध्यादपि काञ्चनम् । नीचादप्युत्तमा विद्या, स्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि ॥१॥
भावार्थ:-बालक से भी हितवचन ग्रहण करना, अशुचि में से भी कांचन का ले लेना, नीच पुरुषों से भी उत्तम विद्या ग्रहण करना और नीच कुल से भी स्त्रीरत्न का ले लेना नीतिशास्त्र का कथन है।
अभयकुमार के इस प्रकार कहने पर श्रेणिक राजा सिंहासन पर बैठे बैठे उस चाण्डाल को उसके सामने नीचे बिठा कर उसके पास से अवनामिनी और उन्नामिनी विद्या सिखने लगे परन्तु बार बार बतलाने पर भी वह विद्या राजा को हृदयंगम नहीं हुई। इस पर राजाने क्रोधित होकर कहा कि-अरे चांडाल ! मुझे विद्या देने में तूं खोटाई