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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : कि-जब तुम इस स्तूप को उखाड़ कर फेंक दोगे तब तुम्हारा उपद्रव दूर हो जायगा। उसकी बात पर विश्वास कर पुरवासी उस स्तूप को उखेड़ने लगे और उनके भी विश्वास को
और भी अधिक दृढ़ करने के लिये उस दुष्ट साधुने कुणिक को कह कर उसकी सैन्य को दो कोश दूर हटा दिया। यह देख कर लोगों को मुनि के वाक्य पर विश्वास हो गया इस लिये उन्होंने कूर्मशिला पर्यत सब खोद डाला और कृणिक के घेरा डाले जानेके समय के बाद आज पुरवासियोंने बारह वर्ष के पश्चात् फिर से नगर के दरवाजे खोल दिये क्यों कि कूणिक तो कपट से दूर चला गया था ।
दरवाजों के खोले जाने की सूचना पाकर कूणिक राजाने आकर नगरी पर घावा किया और नागरिकों को नष्टभ्रष्ट कर दिया। उस समय भी महान् युद्ध हुआ। कूणिक और चेड़ा राजा के युद्ध के समान युद्ध इस अवसर्पिणी में तो दूसरा कोई नहीं हुआ। इस लड़ाई में एक करोड़ और अस्सी लाख सुभट खेत रहे । उनमें से दस हजार सुभट मर कर एक ही मछली के उदर में उत्पन्न हुए, एक देवलोक में गया, एक ऊंच कुल में उत्पन्न हुआ और अन्य सब नरकगति तथा तिर्यग्गति में उत्पन्न हुए।
फिर चेटकराजा नगरी बाहर निकला उस समय कृणिक ने उससे कहा कि-पूज्य मातामह ! मुझे आज्ञा दीजिये, मैं आपका पुत्र हूं, मैं क्या करूँ ? चेटकने उत्तर दिया कि