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व्याख्यान १४ :
: १३१ :
गुरु के वचन से विपरीत वर्तन करनेवाला कूलवालक साधु संसारसागर में डूब गया जिसका दृष्टान्त इस प्रकार है
कूलवालक का दृष्टान्त
किसी आचार्य के एक अविनयी शिष्य था । उनको यदि आचार्य शिक्षा देते या ताड़ना करते तो वह उन पर क्रोधित होता था । एक बार आचार्य उस शिष्य को साथ ले कर उज्जयंत ( गिरनार ) गिरि की यात्रा करने को गये । वहां वह शिष्य यात्रालु स्त्रियों को कुदृष्टि से देखने लगा । यह देख कर गुरुने उसको ऐसा करने से मना किया इस पर वह उन पर कोपायमान हुआ और यात्रा कर लौटने पर उनके पीछे रह कर उनको मारने के लिये उस दुष्ट शिष्यने गुरु पर एक बड़ा पत्थर लड़का दिया परन्तु वह पत्थर गुरु के दोनों पैरों के बीच में हो कर निकल गया । उसके इस दुष्ट कृत्य को देख कर गुरुने उसे शाप दिया कि - हे दुरात्मा ! तेरा स्त्री से विनाश होगा। यह सुन कर उसने ऐसे स्थान पर निवास करना निश्चय किया कि जहां पर खियें न हो कि जिस से गुरु का शाप मिथ्या सिद्ध हो । वह किसी नदी के अग्रभाग में बरान हिस्से में जा कर आतापना लेने लगा | उसके उग्र तप के प्रभाव से उस नदीने उसकी ओर बहना बंध कर दूसरी ओर बहना आरम्भ किया इस लिये लोगोंने उस साधु का नाम कूलवालक रक्खा ।