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व्याख्यान १४ :
: १३३ : को प्रयाण किया। चेटक राजाने भी उसके सामन्त अठारह राजाओं सहित कूणिक का सामना किया। दोनों में परस्पर धमाशान युद्ध हुआ। प्रथम दिवस के युद्ध में ही चेटक राजाने देवताओं द्वारा दिये हुए अमोघ बाणद्वारा कालकुमार को यमपुरी में भेज दिया और दोनों लश्करों में युद्ध बन्द हो गया। इस प्रकार दस दिन में कुणिक के दशों भाइयों को चेटकने मार डाला। चेटक राजा को प्रत्येक दिन एक ही बाण छोड़ने का नियम था । अपने दशों भाइयों का मारा जाना देख कर शोकसागर में निमग्न हुए कुणिक चेटक राजा को दुर्जय मान कर अहम तप द्वारा सौधर्मेन्द्र और चमरेन्द्र की आराधना करने लगा । अतः उन दोनो इन्द्रोंने आ कर कणिक से कहा कि "चेटक राजा जैनधर्मी होने से हमारा साधर्मी है, इस लिये उसको हम नहीं मार सकते, परन्तु तेरे देह की रक्षा करेगें ।" बाद में चमरेन्द्रने उसको महाशिलाकंटक और रथमुशल नामक दो संग्राम दिये अर्थात् दो प्रकार के युद्ध सिखाये । उनमें से पहले संग्राम में यदि शत्रुदल में एक कंकर डाला हो तो वह एक बड़ी शिला समान हो कर शत्रु का नाश करता और एक कांटा डाला हो तो वह शस्त्ररूप हो कर नाश करता था । उस संग्रामद्वारा कृणिकने एक दिवस में चेड़ा राजा के चोरासी लाख सुभटों का विनाश किया। दूसरे दिन छन्नु लाख योद्धाओं का