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व्याख्यान १३ :
: १२३ : श्रीश्रेणिकस्येह यथा तथा,
स्यात्सप्रश्रयं शास्त्रमधीतमृध्यै ॥२॥
भावार्थ:-श्रेणिक राजाने चान्डाल पुत्र को सिंहासन पर बैठा कर विद्या ग्रहण की जिससे उसको शीघ्रतया विद्या का फल प्राप्त हुआ, इसी प्रकार शास्त्र को विनयपूर्वक ग्रहण करने पर सर्व प्रकार की समृद्धि प्राप्त होती है। देखिये :
विनय प्रसंग पर श्रेणिक राजा का प्रबंध
राजगृह नगर में श्रेणिक राजा राज्य करता था । एक बार श्री वीर प्रभु के मुंह से सतीपन की परीक्षा के लिये उसने प्रसन्न हो कर चेलणा रानी से कहा कि "हे प्रिया ! अन्य रानियों से अधिक सुन्दर महल मैं तेरे लिये बनवाना चाहता हूँ सो बतला की कैसा बनवाऊँ ?" चेलणाने उत्तर दिया कि “हे स्वामी! मेरे लिये एक स्तंभवाला प्रासाद बनवाइये ।" यह सुन कर राजाने एक स्तंभवाला महल बनवाने के लिये अभयकुमार को आज्ञा दी। अभयकुमारने सुतारों को बुला कर हुक्म दिया । सुतार ऐसे महल के योग्य काष्ठ अरण्य में चारों ओर ढूंढने लगे । वहां उन्होंने एक मोटे धड़वाला वृक्ष देख कर विचार किया कि "सचमुच यह वृक्ष किसी देवता से अधिष्ठित होना चाहिये, अतः इन को काटने से पूर्व अपने स्वामी को कोई विघ्न न हो जिस के लिये उन्होंने उसके अधिष्ठायक