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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तरः
है, अतः आप मेरी बात स्वीकार कर हम को आभारी कीजिये । उस प्रधान के बचन सुन कर धनद राजाने कुमार का विवाह करना स्वीकार कर उस प्रधान का उपयुक्त सन्मान किया ।
बाद में शुभ दिन को धनद राजा की आज्ञा से मंत्री और सामन्त राजाओं सहित राजकुमार भुवनतिलक ने लग्न के लिये प्रयाण किया । मार्ग में सिद्धपुर नगर के पास आते हुए कुमार एकदम आंखें बन्ध कर मूर्च्छा खाकर रथ में पड़ गया। उसको सब पुकारने लगे परन्तु वह तो मूंगे के समान एक अक्षर भी नहीं बोलता था । इस पर हिमाघात कमल के समान मुखवाले सचिवगण नगर में से कई मांत्रिकों को बुलाकर लाये, परन्तु उन सब के प्रयोग उखर भूमि में वृष्टि के समान निष्फल हुए। उसी समय थोडी-सी दूरी पर कोई केवली स्वर्णकमल पत्र पर बैठ कर देशना दे रहे है ऐसा सुन कर वे मंत्रीगण केवली के पास जाकर उनको वन्दना कर देशना सुनने लगे । केवली भगवान बोले कि - " हे भव्य प्राणियों ! इस संसाररूपी अगाध समुद्र में मत्स्यादिक के समूह के समान संभ्रम से भटकते हुए जीव बहुत कष्ट भोग कर, पूर्ण सत्कृत्यों द्वारा अद्भुत मनुष्य जन्म को प्राप्त करते हैं । उस मनुष्य जन्म को सफल करने के लिये मोक्षसुखरूपी वृक्ष को वृद्धि करने में मेघ के समान विनयद्वारा सिद्धादि परमेष्ठी का आराधन करो । "