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व्याख्यान १२ :
: ११७: शासन अथवा सम्यक्त्व । ये अहेत आदि दस पदों की पूजा, प्रशंसा, भक्ति, अवर्णवादवर्जन तथा आशातनापरित्यागद्वारा विनय करना । अन्य ग्रन्थों में विनय के अनेकों प्रकार बतलाये हैं परन्तु यहां तो दश प्रकार ही माने गये हैं। विनय पर भुवनतिलक मुनि का दृष्टान्त दिया गया है
भुवनतिलक प्रबन्ध कुसुमपुर में धनद नामक राजा था। उसके पद्मावती नामक रानी और भुवनतिलक नामक राजकुमार था। एक बार राजा धनद अपने मंत्रियों सहित सभा में बैठा था कि उस समय रत्नस्थल नगर के राजा अमरचन्द्र के प्रधानने राजा की आज्ञा से राजसभा में प्रवेश किया। उसने राजा को नमस्कार कर विज्ञप्ति किया कि-हे स्वामी! हमारे राजा अमरचन्द्र के यशोमती नामक पुत्री है, वह एक बार पुष्पोद्यान में क्रीड़ा कर रही थी कि उस समय उसने विद्याधरियों के मुख से तुम्हारे पुत्र भुवनतिलक कुमार के गुणसमूह को गाते हुए सुना तब से ही वह यशोमती तुम्हारे कुंवर का ही ध्यान करती हुई महाकष्ट से दिवस निर्गमन करने लगी। वियोग की विधुरता से कृश हुई कुमारी को देख कर राजाने उससे कृश होने का कारण पूछा तो उसने उसका मनोगत अभिप्राय उससे निवेदन किया । वह सुन कर हमारे राजाने मुझे आप के पास आप के पुत्र के साथ उसका लग्न सम्बन्ध करने के लिये भेजा