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व्याख्यान ११ :
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गांव गांव घूमते हुए अनुक्रम से बहतर हजार विद्याधर आदि की कन्याओं के साथ उसने विवाह किया । एक बार शौरीपुर में रोहिणी राजपुत्री का स्वयंवर हो रहा था, जिस में कई राजा और राजपुत्र एकत्रित हुए थे । वसुदेव भी वामन और कुब्ज का रूप बना वहां पहुंचा । सर्व लोग उसे वामनरूप से देखते थे किन्तु रोहिणी उसको मूलरूप से ही देखती थी, इस से रोहिणीने उस पर मोहित होकर अन्य सर्व का त्याग कर उसके कंठ में ही वरमाला आरोपण की । यह देख कर समुद्रविजय आदि राजागण क्रोधित हो कर उस वामन के साथ युद्ध करने को तैयार हुए। वसुदेवने सोचा कि बड़े भाई के साथ युद्ध करना अयुक्त है इस लिये उसने उसके नाम से अंकित बाण समुद्रविजय की ओर फेंका। उस बाण को ले कर देखने पर " वसुदेव तुम को प्रणाम करता है " ऐसे अक्षर पढ़ कर समुद्रविजयने जाना कि यह तो मेरा छोटा भाई है, किसी कारणवश उसने ऐसा रूप धारण किया जान पड़ता है । फिर युद्ध बन्द कर सब मिले, परस्पर आनन्द हुआ और वसुदेव के साथ रोहिणी का विवाह कर उनको ले कर समुद्रविजय अपने नगर को लौटा |
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कुछ समय बाद हाथी, सिंह, चन्द्र और समुद्र इन चार स्वप्नोंद्वारा सूचित बलराम को रोहिणीने जन्म दिया ।