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व्याख्यान ११ :
: १११ : विचार कर वह खुद की आत्मा को धिक्कारने लगा। इस प्रकार उसको वैयावृत्य में निश्चल जान कर वे दोनों देव प्रत्यक्ष हुए और उसको वंदना कर, क्षमा याचना कर, सुगंध पुष्पोदक की वृष्टि कर उसको प्रशंसा करते करते स्वर्ग को लौट गये।
नेमिचरित्र में नंदिषेण मुनि का बारह हजार वर्ष तक तपस्या करना और वसुदेव हिंडि में पंचावन हजार वर्ष तक तपस्या करना कहा गया है। ...
अन्त में नंदिषेण मुनिने जब अनशन ग्रहण किया तब कोई चक्रवर्ती राजा उसके सर्व अन्तःपुर सहित उसको वन्दना करने निमित्त आया। उस चक्रवर्ती की अत्यंत स्वरूपवान स्त्रियों को देख कर उसकी पूर्व स्थिति का सरण होने से उस मुनिने ऐसा निदान किया किइस तपस्या के प्रभाव से मैं स्त्रीवल्लभ बचें। फिर वह मुनि कालधर्म को प्राप्त कर सातवें महाशुक्र देवलोक में देवता हुआ। . देवलोक से चव कर नंदिषेण का जीव सूर्यपुर में अंधकवृष्णी राजा की सुभद्रा नामक राणी से दसवां वसुदेव नामक पुत्र हुआ। वह कुमार पूर्व जन्म के किये निदान के कारण स्त्रीवल्लभ हुआ। वसुदेव कुमार नगर में जहां जहां फिरता वहां वहां नगर की स्त्रिये उनके गृहकार्यों को