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व्याख्यान ११
: १०९ : मुनिने उसको भृगुपात करने से रोक कर उसका कारण पूछा। इस पर उस मुनि से प्रणाम कर अपना सब वृत्तान्त कह सुनाया। मुनिने कहा कि-हे मुग्ध ! निरन्तर मलिन देहवाली, जिसके शरीर के बारह द्वारों में से मल बहता ही रहता है ऐसी स्त्रीयों में तू आसक्ति न रख, ऐसे मरण से कोई कर्म क्षय नहीं होता अपितु कर्मवृद्धि होती है परन्तु यदि तुझे सुख की आशा हो तो जीवनपर्यंत चारित्रधर्म की प्रति. पालना कर कि जिससे आगामी भव में तुझे सुख प्राप्त हो सके। यह सुन कर उसने शीघ्र ही उस मुनि के पास प्रव्रज्या ग्रहण की। गुरु के पास विनयपूर्वक धर्मशास्त्रों का पठन करते हुए वह गीतार्थी हुआ। अंत में उस नंदिषेण मुनिने अभिग्रह किया कि-निरन्तर छट्ट तप कर पारणे के दिन वृद्ध, ग्लान और अनेक साधुओं की वैयावच्च कर बाद में आंबिल करना।
इस प्रकार अविच्छिन्न अभिग्रह का पालन करते हुए एक बार इन्द्र ने उसकी सभा में नंदिषेण की उग्र तपस्या तथा निश्चल अभिग्रह की प्रशंसा की। इस पर अविश्वास होने से दो देवता इस बात की परीक्षा लेने के लिये उसके पास आये । एक देवता ग्लान साधु का रूप धारण कर ग्राम के बाहर ठहरा और दूसरा देव साधु के रूप में नंदिषेण के पास आया। उस समय नंदिषेण मुनि छट्ट का पारणा होने से पच्चख्खाण कर भोजन करने बैठता ही था कि उस