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व्याख्यान ९
: ९९ आने पर अर्जुन सेठ की और देख कर उस से पूछा कि-तुम कौन हो ? और कहां जा रहे हो ? सेठने उत्तर दिया किमैं सुदर्शन नामक श्रेष्ठी हूँ और श्रीवीरप्रभु को वन्दना करने को जा रहा हूँ। तू भी उन सर्वज्ञ को वन्दना करने को चल । यह सुनकर अर्जुन भी उसके साथ भगवान के समवसरण में गया। प्रभु को वन्दना कर उन दोनों ने इस प्रकार देशना सुनी कि
"हे भव्य प्राणियों ! मोह से अन्धे हुए इस जगत में मनुष्य जन्म, आर्य देश, उत्तम कुल, श्रद्धालुपन, गुरुवचन का श्रवण और कृत्याकृत्य का विवेक यह मोक्षरूपी महल पर चढ़ने के पगथियों की पंक्ति है । यह पूर्व के किये हुए सुकृत्यों के योग से ही प्राप्त होते हैं।" इत्यादि देशना सुनकर कितने ही नियम ग्रहण कर सुदर्शन सेठ अपने घर पर आया।
अर्जुनमाली को वैराग्य उत्पन्न होने से पूर्व किये वध सम्बन्धी पाप को हनन करने के लिये उसने भगवान् के समीप जाकर दीक्षा ग्रहण की और उसीके साथ उसने अभिग्रह लिया कि-हे विभु ! आज से मुझे आप की आज्ञा से निरन्तर षष्ठ तपद्वारा आत्मा को भाते हुए विचरन करना हैं । स्वामीने उसको योग्य समझ कर वैसा करने की आज्ञा प्रदान की। फिर अर्जुन मुनि छ? छट्ट का तप करते विचरने