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व्याख्यान १० :
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गृह नगर में धना श्रेष्ठी की चिलाती नामक दासी की कुक्षी से पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। लोगों में वह चिलातीपुत्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसकी स्त्री स्वर्ग में से चव कर धना श्रेष्ठी के यहां पांच पुत्रो के बाद सुसुमा नामक पुत्री हुई। धना श्रेष्ठीने उस पुत्री को खिलाने के लिये चिलातीपुत्र को रखने की योजना की । एक बार श्रेष्ठीने चिलातीपुत्र को सुसुमा के साथ असभ्य क्रीडा करते देख कर उनको निकाल दिया। वह सिंहगुहा नामक चोर की पल्ली में जाकर रहने लगा । पल्लीपतिने उसके अवसान काल में उसको अपने पुत्र की जगह स्थापित कर उसे पल्लीपति बना दिया।
वहां कामदेव के शस्त्र से वेधित चिलातीपुत्र सुसुमा का बारंबार स्मरण करने लगा। एक बार उस पापीने सर्व चोरों से कहा कि-हे चोरों ! आज हमे राजगृह में धनाश्रेष्ठी के यहां चोरी करने चलना चाहिये । वहां से जितना भी धन प्राप्त हो वो सब तुम लोग आपस में बांट लेना और उसकी पुत्री सुसुमा मेरे हिस्से में रहेगी । इस प्रकार व्यवस्था कर रात्रि के समय वे चोर धनाश्रेष्ठी के घर में घुस पड़ें । धना सेठ आदि को अवस्वापिनी देकर सर्व चोर धन लेकर निकल गये और चिलातिपुत्र सुसुमा को ले कर भगा । थोडी देर बाद सेठ की आंखे खुली तो उसने हल्लागुल्ला कर सब को जगा दिया। अपने पांचों पुत्रो सहित नगर के कोतवाल आदि को संग में ले कर सेठ चोरों की खोज में उनके पीछे पीछे