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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
चला । उसको पीछे आता देख कर सब चोर मारे भय के सब धन वहीं छोड़ कर भिन्न भिन्न दिशाओं में भग गये । उस धनको ले कर कोतवाल आदि तो वापस लौट गये परन्तु धना सेठ पांचों पुत्रों सहित सुसुमा की खोज में और आगे बढ़ा | उसको तलवार हाथ में लिये हुए आते देख कर चिलाति पुत्र ने अपनी खड़ग से सुसुमा का मस्तक धड से अलग कर धड़ को वही डाल मस्तक हाथ में ले कर शिघ्रतया भाग गया । धना सेठ जब उस स्थान पर आया तो सुसुमा को मरी हुई देख कर विलाप करने लगा और क्षण वार ठहर कर वापिस अपने नगर को चला गया ।
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धन श्रेष्ठी दूसरे रोज पुत्रों सहित जब श्रीवीरप्रभु के पास धर्मदेशना सुनने गये तो प्रभुने उपदेश किया कि इस संसार में मनुष्य, यह मेरा पिता है, यह मेरी माता है, यह मेरे बांधव है, यह परीजन है, ये स्वजन हैं, और यह द्रव्य मैंने उपार्जन किया हैं ऐसा मानते हैं परन्तु वे यह नहीं जानते कि वे खुद यमराज के वश में हैं। इत्यादि जिनेवर की वाणी सुन कर प्रतिबोध होने से धन श्रेष्ठीने दीक्षा ग्रहण की और तीव्र तपस्या कर स्वर्ग को सिधारे । उसके पांचों पुत्रोंने भी श्रावक धर्म अंगीकार किया ।
इधर चिलाति दासी का पुत्र हाथ में सुसुमा का मस्तक लेकर दौड़ा जाता था और उस मस्तक से निकलते हुए खून से उसका शरीर ओतप्रोत हो रहा था। थोड़ी दूर जाने पर