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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तरः लगा। पारणा के दिन गोचरी के लिये जब वे ग्राम में जाते तो उन्हें देख कर लोग कहते कि-इसने मेरे पिता को मारा है, कोई कहता कि-इसने मेरी माता को मार डाली है। इस प्रकार कोई भाई को, कोई बहिन को, और कोई स्त्री को मार डालने का कह कह कर मुनि को गालियें देने लगे, आक्रोश करने लगे, मारने लगे, धिक्कारने लगे, और निन्दा करने लगे; परन्तु वे मुनि उन पर मन से भी विना खेद पाये सर्व उपसर्ग सम्यकप से सहन करने लगे। ऐसा करते हुए किसी समय पारणा के दिन कुछ आहार मिलता तो वे भगवान को निवेदन कर मूर्छा रहित उपयोग में लाते । इस प्रकार उदार तप, कर्म द्वारा आत्मा को भाते हुए वह अर्जुनमाली मुनिने कुछ उणे छ मास व्यतीत किये । अन्त में आधे मास की संलेखना कर के अंतकृत केवली होकर अनन्तचतुष्टयवाले मोक्षपद को प्राप्त किया।
सदैव सात मनुष्यों के वध करनेवाले अर्जुनमालीने भगवान को पाकर, अनुपम अभिग्रह का पालन कर, अन्त में अन्तकृत केवली होकर सिद्धपद को प्राप्त किया और सुदर्शन श्रेष्ठीने भी स्वर्ग के सुख को प्राप्त किया।
हे भव्य जीवो ! आगम के श्रवण करने में जिसका चित्त लगा हुआ है ऐसे सुदर्शन श्रेष्ठी के इस चरित्र को पढ़ कर भवसागर को पार करने के लिये नौका के समान धर्म का श्रवण करने का निरन्तर यत्न करो ।