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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
चाहता हूं । यह सुन कर उन्होंने जवाब दिया कि हे वत्स ! वहां जाने से तेरे को उपसर्ग होगा इसलिये यहीं रह कर भाव से प्रभु को वन्दना करले । सुदर्शनने जवाब दिया कि - हे मातापिता ! तीनों जगत के गुरु श्री जिनेश्वर के मुँह से बिना उपदेश के श्रवण किये मुझे तो भोजन करना भी नहीं कल्पता । इस प्रकार कह कर मातापिता की आज्ञा लेकर सुदर्शन श्रीवीर प्रभु को वन्दना करने को चला । मार्ग में चलते हुए उसने क्रोध से मुद्गर ऊंचा ऊठाकर आते हुए कोपायमान यमराज के समान अर्जुन माली को दूर से आते हुए देखा । इस पर शीघ्र ही भय रहित सुदर्शन सेठ उसके वस्त्र के छोर से पृथ्वी का प्रमार्जन कर वहां बैठ गया। फिर जिनेश्वर को नमस्कार कर, चार शरणों को अंगीकार कर, सर्व प्राणियों को खमाकर, सागारी अनशन कर उपसर्ग नाश होने पर ही पारने का निश्चय कर कायोत्सर्ग किया और पंचपरमेष्ठी महामंत्र का स्मरण करने लगा | अर्जुनमाली के शरीरस्थ यक्ष उसके पास आया परन्तु मंत्र से विष रहित किये हुए और खीजे हुए सर्प के समान वह उसका पराभव करने में अशक्त रहा, उसका रोष नष्ट हो गया । वह यक्ष भयभीत हो कर और अपना मुद्गर लेकर अर्जुन के शरीर से निकल गया । यक्ष के प्रवेश से मुक्त हुआ अर्जुन भी काटे हुए वृक्ष के समान शीघ्र ही पृथ्वी पर गिर पड़ा । थोडी देर बाद सुध
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