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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : रूप से यह जीव शाश्वत है और तिर्यच, मनुष्य, नारकी तथा देवपन पर्याय से अशाश्वत है।
इस प्रकार के भगवान के वाक्यों से जमालि को श्रद्धा नहीं हुई इस से वह खेद को तथा दूसरों को भी कुयुक्तियों द्वारा मिथ्यात्वी करने लगा। अन्त में मृत्यु समय भी वह बिना पापकर्म का प्रायश्चित लिये तथा आलोयणा प्रतिक्रमणादि किये एक मास का अनशन कर लांतक देवलोक में तेरह सागरोपम की आयुष्यवाला किल्विषीदेव हुआ ( यह जमालि का चरित्र भगवती सूत्र में विस्तार से दिया हुआ है ) .
. श्री जिनेश्वरने कहा है कि-देव तियंच, और मनुष्यों के भव में पांच पाँच बार उत्पन्न होकर वह जमालि फिर से समकित पाकर सिद्धिसुख को पावेगा । इस प्रकार श्री वीर प्राकृत चरित्र में कहा गया है।
इस जमालि के चरित्र को पढ़ कर भव्य जीवों को नष्ट दर्शनी का संग नहीं करना चाहिये । ऐसी संगति होने पर भी जो ढंक श्रावक के समान श्रद्धा का त्याग नहीं करते ते सर्व प्रकार के सुख को प्राप्त करते हैं। इत्यब्ददिनपरिमितोपदेशप्रासादवृत्तौ प्रथम
स्तंभे सप्तमं व्याख्यानम् ॥ ७ ॥