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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : नहीं कर सकता। मैंने जब बड़े बड़े वादियों को बड़ी बड़ी सभाओं में चूप कर दिया है तो केवल घर का ही शूरवीर ऐसा मेरे सामने क्या चीज है ? जिस वायुने बड़े बड़े हाथियों को उड़ा दिये हैं उसके सामने रुई का फूंवा किस गिनती में है ? उसके ऐसे वचन सुन कर अग्निभूति बोला कि-हे भाई! ऐसे सामान्य धूर्त पर तुमकों पराक्रम दिखाने की क्या आवश्यकता है ? क्या पक्षिराज ( गरुड़) छोटे छोटे कीड़ों पर पराक्रम दिखलाता है ? अतः ऐसे वादी कीट पर तुमको पराक्रम दिखलाने की कोई आवश्यकता नहीं है । हे बन्धु ! मैं ही उसके पास जाउगा । एक कमल की दंडी को उखेड़ने के लिये ऐरावत हाथी को ले जाने की क्या आवश्यकता हैं ? यह सुन कर गौतमने उसके भाई अग्निभूति से कहा कि-हे
भाई ! मैंने सर्व वादियों का पराजय किया हैं किन्तु फिर . भी उस मग के पाक में रहे कोरडु की तरह, घाणी में रहे
आखे तील के कण के समान और अगस्तिन समुद्र के पान करते हुए शेष रहे जलबिन्दु के समान छोटे खड्डे के समान बाकी रहा है परन्तु उस एक को बिना जीते सब जीते हुए भी नहीं जीते के समान हैं क्यों कि एक बार शील का खंडन करनेवाली सती स्त्री भी हमेशा के लिये असती कहलाती हैं। समुद्र में चलनेवाले जहाज में यदि छोटासा भी छिद्र हो तो वह समग्र जहाज को डूबा देता हैं। अहो! मेरे भय मारे गोड़ देश के पंडित देश छोड़ कर भग गये, गुजरात के