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व्याख्यान ८:
आधारभूत, साक्षात् परमेश्वरस्वरूप, वादीरूपी घुवड़ को नष्ट करने में सूर्य समान, वादीरूपी समुद्र का शोषण करने में अगस्त्यऋषि समान, वादीरूपी पतंगीयों को भस्म करने में दीपक समान, वादीरूप ज्वर का नाश करने में धन्वन्तरी वैद्य के समान, सरस्वती के कृपापात्र, और बृहस्पति (देवगुरु ) भी जिसके शिष्यरूप हैं ऐसे हे भगवान ! तुम्हारी जय हो । इस प्रकार शिष्यों के मुख से गायी जानेवाली बिरुदावली का श्रवण करते हुए गौतम आगे बढ़ता गया।
समवसरण के नजदीक आने पर अशोकादि अतिशयों को देख कर तथा जातिवैरवाले प्राणियों को वैर का त्याग कर एकत्रित हुए देख कर वह बोला कि-अहो! यह तो कोई महाधूर्त जान पड़ता हैं । उस पर उसका छात्र (शिष्य ) बोला कि-हे पूज्य गुरु ! हम आपकी कृपा से हमेशा करोड़ो वादीयों को जय करने में समर्थ हैं तो फिर इस एक का पराजय करना तो कौन बड़ी बात है ? हमारे में से एक ही छात्र उसका निग्रह करने में समर्थ हैं। यह सुन कर गौतम समवसरण के समीप गया। समवसरण के पहिले पगथिये पर चढ़ कर श्री वीरप्रभु को देखते ही उसको शंका ( भय) उत्पन्न हुई । वह आश्चर्यचकित होकर बिचारने लगा किअहो ! यह कौन हैं ? क्या सूर्य है ? नहीं, सूर्य तो उष्ण किरणोंवाला होता हैं । तो क्या यह चन्द्र हैं ? नहीं, वह तो कलंकी है । तो क्या मेरुपर्वत है ? नहीं, वह तो अत्यन्त