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व्याख्यान ८: विद्वान् जर्जरित होकर त्रासित हो गये हैं, मालवा देश के पंडित तो मानों मरसे गये हैं और तिलंग देश के उदय हुए पंडित भी अस्त हो गये हैं। विश्व में मेरे सामने वाद करनेको खड़ा होनेवाला एक भी पंडित शेष नहीं रहा । केवल यह एक ही धूर्त जैसे मेंढक कृष्णसर्प को लात मारने को तैयार हो, बैल ऐरावत हाथी को सींग मारने को तैयार हो और हाथी अपने दांतद्वारा पर्वत को तोड़ने का प्रयास करे उसी प्रकार मेरे साथ वाद करने को इच्छुक हैं । अथवा इसने जो यहां आकर मेरे को क्रोधित किया हैं यह उसने सोये हुए सिंह को जागृत करने का प्रयास किया हैं। अपनी आजीविका और यश को हानि पहुंचाने के लिये उसने ऐसा अविचारी कृत्य क्यों किया हैं ? इसने वायु के सामने होकर अग्नि को प्रज्वलित किया हैं । देह के सुख के लिये इसने कौचलता का आलिंगनं किया हैं और शेषनाग के फण पर मणि लेने के लिये उसने हाथ लम्बा किया हैं । अरे ! जब तक सूर्य उदय नहीं होता तब तक ही खद्योत और चन्द्र प्रकाश कर सकता हैं किन्तु सूर्य के उदय होते ही खद्योत
और चन्द्र अदृश हो जाते हैं। एक ही सिंह के गर्जन से सर्व पशु भग जाते हैं । जब तक गुफा में रहनेवाले सिंह के पूंछ झपाटे का शब्द सुनाई नहीं देता तब तक ही मदोन्मत्त
१ कौचा का केवल स्पर्श करने से सम्पूर्ण शरीर में जलन पैदा हो जाती है तो उसके आलिंगन करने से तो क्या नहीं होता ?