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व्याख्यान ८
: ८३ : भावार्थ:-क्रियावादी के एक सो अस्सी भेद हैं, अ. क्रियावादी के चोरासी भेद हैं, अज्ञानवादी के सड़सठ भेद हैं और विनयवादी के बत्तीस भेद है-कुल ३६३ भेद हैं।
ऐसे कुदृष्टि के संग का त्याग करना तथा बौद्ध अर्थात् क्षणिकवादियों का तथा मिथ्याभाषी-नास्तिक का संग, शुद्ध बुद्धिवाले भव्य प्राणियों को सर्वथा सर्व प्रकार से शीघ्रतया छोड़ देना चाहिये । इसे चोथी पाखंडीसंग-वर्जनरूप श्रद्धा जानना चाहिये । इसकी दृढ़ता के लिये इन्द्रभूति (गौतम) का दृष्टान्त कहा जाता है
इन्द्रभूति (श्री गौतमस्वामी ) का दृष्टान्त । गुरुं वीरं च संप्राप्य, इन्द्रभूतिर्गणाधिपः । जातः कुसंगत्यागेन, सद्धर्मकथने रतः ॥१॥
भावार्थ:-इन्द्रभृति (गौतम) गणधर महावीरस्वामी गुरु को पाकर, कुसंग का त्याग कर सद्धर्म की प्ररूपणा करने में आसक्त हुए।
श्रीमहावीरस्वामी केवलज्ञान प्राप्त करने बाद अपापानगरी के महसेन नामक उद्यान में सोमिल नामक ब्राह्मण के घर पर यज्ञ करने को ग्यारह विद्वान ब्राह्मण एकत्रित हुए। उसमें इन्द्रभृति, अग्निभूति आदि पांच पंडित पांच सो पांच सो शिष्यों के सहित आये थे । दो पंडित साढे तीनसो